कैदियों के अधिकार और परिवारों की देखभाल: जस्टिस बीआर गवई ने उठाई महत्वपूर्ण चिंताएं

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीआर गवई ने हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एक कार्यक्रम में कैदियों के अधिकारों और उनके परिवारों की देखभाल पर महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। उन्होंने जोर देकर कहा कि समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों को सशक्त बनाने के लिए सिर्फ कानूनी या आर्थिक सहायता पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही, उन्हें अपनी आवाज उठाने में सक्षम बनाने की आवश्यकता है।

जस्टिस गवई ने भारत में कैदियों की चिंताजनक स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित किया, खासकर विचाराधीन कैदियों की। उन्होंने बताया कि देश की जेलों में बंद 76% कैदी अभी भी दोषसिद्ध नहीं हुए हैं और कानूनी सहायता के अभाव में वर्षों तक जेल में सड़ रहे हैं। इस गंभीर स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने जेलों में कानूनी जागरूकता अभियान तेज करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

गिरफ्तारी और रिमांड के स्तर पर कानूनी सहायता की कमी
गिरफ्तारी से पहले और रिमांड के दौरान कानूनी सहायता के कमजोर पड़ाव पर जस्टिस गवई ने आंकड़ों के माध्यम से चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि जनवरी 2024 से अगस्त 2024 तक देशभर में सिर्फ 24,173 लोगों को गिरफ्तारी-पूर्व कानूनी सहायता मिली, 23,079 को गिरफ्तारी के समय सहायता दी गई, और 2,25,134 लोगों को रिमांड के दौरान कानूनी मदद प्राप्त हुई। उन्होंने इसे सुधारने की अपील करते हुए कहा कि औपचारिक हिरासत से पहले लोगों को समय पर कानूनी सहायता उपलब्ध कराना अत्यावश्यक है।

परिवार और बच्चों पर ध्यान देने की आवश्यकता
जस्टिस गवई ने कहा कि कैदियों के परिवार, विशेषकर उनके बच्चों की स्थिति भी गंभीर होती है। उन्होंने विधिक सेवा प्राधिकरणों की जिम्मेदारी पर प्रकाश डाला कि वे कैदियों के बच्चों के लिए शिक्षा, परामर्श और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराएं। इसके लिए सामाजिक कल्याण विभागों, गैर-सरकारी संगठनों और बाल कल्याण समितियों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि विधिक सेवा प्राधिकरण को परिवारों के लिए कैदियों से मिलने और संचार की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि पारिवारिक संबंध मजबूत बने रहें। यह न केवल कैदियों की, बल्कि उनके परिवारों की मानसिक भलाई के लिए भी आवश्यक है।

जागरूकता और सुधार की अपील
जस्टिस गवई ने सुप्रीम कोर्ट के सुहास चकमा बनाम भारत संघ मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मामले में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए थे। उन्होंने कहा कि समाज को चाहिए कि वह कैदियों को सिर्फ दोषी न माने, बल्कि उनकी समस्याओं को समझकर समाधान की ओर कदम बढ़ाए।

यह विचार जेल सुधार और सामाजिक कल्याण के बीच गहरे संबंध को दर्शाते हैं, जो न्यायिक और सामाजिक व्यवस्था में व्यापक बदलाव की मांग करते हैं।