तलाक़ ए हसन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब

दिल्ली: तलाक ए हसन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी पतियों को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है. तलाक-ए-हसन के मुताबिक,, कोई भी मुस्लिम व्यक्ति महीने में एक बार मौखिक या लिखित रूप में अपनी पत्नी को तलाक देता है और लगातार तीन महीने तक ऐसा करने पर तलाक औपचारिक रूप से मंजूर हो जाता है.

मामला एक महिला प्रत्रकार की तरफ से याचिका दाखिल की गई है.

इस मामले को लेकर बेनजीर हीना ने कोर्ट में खुद अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि पहले तलाक के नोटिस पर उनका बेटा 7 महीने का था, अब उसका बर्थडे है, इतने में 3 तलाक के नोटिस आ गए. इसके बाद कोर्ट ने कहा कि वो इस मामले को लेकर गंभीर है. कोर्ट के मुताबिक कुछ मुद्दे हैं जिन्हे देखना है.

बेनजीर ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा, ‘ पूरे देश में मेरी जैसी तमाम मुस्लिम महिलाएं तलाक ए हसन से पीड़ित हैं.’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोशिश करते हैं, उनको यहां बुलाकर बात करते हैं. पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि पहली नजर में तलाक ए हसन उतना अनुचित नहीं लगता है.

एक महिला पत्रकार की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि उनके पति ने पहला नोटिस स्पीड पोस्ट से 19 अप्रैल को भेजा था. बाद में एक-एक महीने के अंतराल पर बाकी दो नोटिस भेजे गए. याचिकाकर्ता ने कहा है कि तलाक ए हसन के प्रावधान मनमाने हैं और मुस्लिम पुरुष इसके तहत पत्नी को तीन महीने में एक-एक कर तीन बार तलाक बोलता है और फिर तलाक हो जाता है.

बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी महीना कहा था कि मुस्लिमों में ‘तलाक-ए-हसन’ के जरिए तलाक देने की प्रथा तीन तलाक की तरह नहीं है और महिलाओं के पास भी ‘खुला’ का विकल्प है. न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की बेंच ने कहा था कि अगर पति और पत्नी एक साथ नहीं रह सकते तो रिश्ता तोड़ने के इरादे में बदलाव न होने के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत तलाक दिया जा सकता है. पीठ ‘तलाक-ए-हसन’ और ”एकतरफा न्यायेत्तर तलाक के सभी अन्य रूपों को अवैध तथा असंवैधानिक” घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवा