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इटावा प्रकरण पर देवकीनंदन महाराज की टिप्पणी: चोटी काटना अपमानजनक, सनातन को जाति की राजनीति से दूर रखें

इटावा जिले में हाल ही में सामने आए कथित ‘चोटी काटने’ और कथा मंच पर व्यासपीठ से जुड़ी धार्मिक असहमति के विवाद के बीच, प्रसिद्ध आध्यात्मिक वक्ता देवकीनंदन ठाकुर महाराज का बयान सामने आया है। उन्होंने इसे सनातन पर सीधा हमला बताते हुए निंदनीय बताया और कहा कि धार्मिक प्रतीकों और परंपराओं का अपमान किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।

देवकीनंदन महाराज ने कहा, हम हमेशा तिलक, चोटी और सनातन परंपराओं के संरक्षण की बात करते हैं। किसी भी सनातनी की चोटी काटना केवल उसका अपमान नहीं बल्कि हमारे धर्म की गरिमा को ठेस पहुँचाना है। व्यासपीठ की भी मर्यादा है और उस पर वही व्यक्ति बैठ सकता है जो योग्य और धर्मानुसार आचरण करता हो।”

जातिगत राजनीति पर भी साधा निशाना

देवकीनंदन ठाकुर ने किसी राजनेता का नाम लिए बिना कहा कि, कुछ लोग आज जातिगत राजनीति के लिए सनातन को बांटना चाहते हैं। यही लोग तब चुप रहते हैं जब देश में धर्म और संस्कृति को ठेस पहुँचती है।”

उन्होंने हाल ही में एक मुस्लिम टेंपो चालक द्वारा कथित तौर पर 23 लड़कियों को बहला-फुसलाकर शोषण करने के मामले का जिक्र करते हुए पूछा कि,

“जब इतनी बड़ी घटना घटी, तब कोई बड़ा नेता क्यों नहीं बोला? क्या उन बेटियों की कोई इज्जत नहीं थी?”

“राम और कृष्ण ने धर्म की रक्षा के लिए लिया अवतार”

अपने वक्तव्य में महाराज ने कहा कि धर्म की रक्षा और स्थापना के लिए ही भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ।

“राम क्षत्रिय थे, कृष्ण यदुवंशी थे — दोनों ने धर्म की रक्षा की। हमारा भी यही दायित्व है कि हम सनातन मूल्यों की रक्षा करें।”


संजय निषाद ने भी दी प्रतिक्रिया

उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री संजय निषाद ने भी इस पूरे प्रकरण पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने घटना को “गंभीर और संवेदनशील” बताया और कहा कि इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।

“मैं इस घटना की निंदा करता हूं। ये ठीक नहीं है। सभी को जीने का अधिकार है — चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या पंथ से हो। मेरे यहां तो निषाद समुदाय संस्कृत पढ़ाता है, पंडित बनता है। ऐसे मामलों से सामाजिक विघटन होता है। यह संविधान के उस भाव के विरुद्ध है जिसमें एकता और समरसता निहित है।”

संजय निषाद ने यह भी कहा कि,

“अगर ऐसा ही चलता रहा तो समाज में गहरे विभाजन हो सकते हैं — पिछड़े, दलित और सवर्ण अलग-अलग खेमों में बंट सकते हैं। संविधान सबको एक करने के लिए बना था।”


राजनीति बनाम धर्म का संघर्ष?

इटावा की यह घटना एक बार फिर इस बात को रेखांकित करती है कि कैसे धार्मिक परंपराएं राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन रही हैं। जबकि एक ओर संत समाज इसे धर्म और संस्कृति के विरुद्ध अपमानजनक मान रहा है, वहीं राजनीतिक गलियारों में इसे अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखा जा रहा है।अब देखना यह है कि इस मामले में प्रशासनिक जांच क्या निष्कर्ष निकालती है और राजनीतिक बयानबाजी से इतर समाज में कौन-सी चेतना जागती है।