एक बार फिर हिंदुओं को आहत करने वाला फैसला कोर्ट ने दिया!
दिल्ली: दिल्ली की साकेत कोर्ट के द्वारा हिंदुओं को आहत करने वाला फैसला दिया है। 9 दिसंबर 2021 को क़ुतुब मीनार में 27 हिंदू और जैन मंदिर वाली याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने हिंदुओं की याचिका को खारिज करने के पीछे जो तर्क दिया है वह है अतीत में की गई गलतियां वर्तमान या भविष्य की शांति को भंग करने का आधार नहीं हो सकती। हिंदुओं को आहत करने वाले इस निर्णय का आधार बना है उस समय की सरकार के द्वारा 1991 में बनाया गया कानून को अदालत ने इसी पूजा स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधानों के उल्लंघन को देखते हुए सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 A के अंतर्गत ये याचिका खारिज की है। अपने इस निर्णय में साकेत अदालत के सिविल जज नेहा शर्मा ने कहा है कि भारत का इतिहास सांस्कृतिक रूप से सदैव समृद्धि रहा है। इस पर कई राजवंशों का शासन रहा है सुनवाई के दौरान वादी के वकील ने राष्ट्रीय शर्म के मुद्दे पर काफी जोरदार तर्क रखे हैं। किसी ने भी इन से इनकार नहीं किया है कि अतीत में गलतियां की गई थी, परंतु इस तरह की गलतियां हमारे वर्तमान और भविष्य की शांति भंग करने का आधार नहीं हो सकती हैं। गत 9 दिसंबर 2021 को दिए गए निर्णय में अदालत ने यह भी कहा है कि अगर सरकार के द्वारा एक बार किसी स्मारक को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया है तो लोग इस बात पर जोर नहीं दे सकते कि उस स्थान को वास्तव में सक्रिय रूप से धार्मिक चीजों के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। बता दें कि पिछले वर्ष अदालत में कुतुब मीनार के अंदर मंदिर होने की बात कहते हुए स्थानीय हिंदुओं को पूजा का अधिकार दिलाने हेतु एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में कहा गया था कि कुतुब मीनार के अंदर ही हिंदू और जैन मंदिरों के परिसर भी स्थित हैं।दायर की गई उस याचिका में कहा गया था कि कुतुब मीनार के अंदर कभी 27 मंदिर हुआ करते थे जिनमें भगवान विष्णु जी का मंदिर मुख्य रूप से स्थापित था और इन्हीं मंदिरों को तोड़कर वहां पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया था। याचिका में बताया गया था कि वर्तमान की कुतुब मीनार के अंदर पहले भगवान श्री गणेश भगवान शिव और मां पार्वती जी तथा श्री हनुमान जी सहित अन्य देवी-देवताओं के कुल 27 मंदिर हुआ करते थे अदालत को की गई प्रार्थना में यह मांग की गई थी कि इन सभी मंदिरों और प्रतिमाओं को न केवल पुनः स्थापित किया जाए बल्कि हिंदुओं को पूजा के अधिकार के तहत कुतुब मीनार परिसर में नियमित पूजा पाठ की अनुमति भी दी जाए।अदालत के इस निर्णय की हिंदू समाज में काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई है। सोशल मीडिया के इस युग में एक सोशल मीडिया यूजर ने सवाल खड़ा किया है कि इससे शांति भंग कैसे होगी ? दूसरे ने तो न्यायिक व्यवस्था पर ही सवाल खड़े कर दिए। इस शख्स ने तर्क के साथ अपनी बात रखी हैं: मेरा मानना था कि न्यायिक व्यवस्था पिछली गलतियों और जिनके साथ अन्याय हुआ है उसे न्याय दिलाना है। सवाल पूछते हुए उसने यह तक कह दिया कि सभी दाखिल याचिकाओं को क्यों नहीं खारिज कर दिया जाता ? क्योंकि हर एक याचिका को किसी ना किसी पुराने विवाद के कारण ही दाखिल किया जाता है। एक यूजर ने तो कोर्ट के इस निर्णय पर बेहद आपत्तिजनक भाषा का भी प्रयोग किया है जिससे यहां प्रकाशित नहीं किया जा सकता है। एक और यूजर ने कोर्ट से यह पूछा है कि उन्हें यह क्यों लगता है कि मुस्लिम लोग कोर्ट के द्वारा दिए गए फैसले से दंगे फसाद पर उतर आएंगे ?? सोशल मीडिया पर ऐसी बहुत सारी प्रतिक्रियाएं चल रही हैं जिन्हें आप भी आसानी से देख सकते हैं।