न्यायालय ने पत्रकार दीपक चौरसिया के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट को बरकरार रखते हुए जमानत अर्जी को किया खारिज

गुरुग्राम: नाबालिका की वीडियो को तोड़मरोड़कर अश्लील ढंग से प्रसारित करने के मामले में पत्रकार दीपक चौरसिया को गुरुग्राम के पॉक्सो की अदालत से एक बार फिर झटका मिला है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते 28 अक्टूबर को पॉक्सो की अदालत से गिरफ्तारी वारंट के आदेश को रद्द करने हेतु पॉक्सो की जिला अदालत में जमानत की अर्जी लगाकर साथ ही तत्काल गिरफ्तारी पर भी रोक लगाने की मांग की थी। जिसपर न्यायालय ने तत्काल कोई राहत न देकर सरकार और पीड़िता पक्ष को नोटिस जारी कर मामले की सुनवाई के लिए 10 नवंबर तारीख तय की थी ।

दीपक चौरसिया को न्यायालय से दूसरी बार भी नही मिली राहत:

बीते 10 नवंबर को श्री मति शशि चौहान की अदालत में सुनवाई हुई। जिसमे दीपक चौरसिया की तरफ से गत 28 अक्टूबर के गिरफ्तारी वारंट को रद्द करने के लिए 3 नबंबर को जमानत की अर्जी लगाई गई। जिसमे दीपक चौरसिया के वकील ने यह दलील पेश करते हुए कहा की वह अस्वस्थ होने के कारण हॉस्पिटल में भर्ती था जिस वजह से 28 अक्तूबर को न्यायालय के समक्ष पेश होने में असमर्थ था। जिसके मेडिकल दस्तावेज भी पेश किए। जिसके बाद पीड़िता और सरकारी वकील व आरोपी के वकील के दलील को सुनकर न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि आवेदक-अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता और राज्य के विद्वान विशेष लोक अभियोजक द्वारा परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिए गए तर्कों को पढ़ने के बाद, यह माना जाता है कि वर्तमान मामले में अभियुक्त के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए गए थे। आदेश दिनांक 28.10.2022 द्वारा इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उनकी ओर से पेश किए गए व्यक्तिगत पेशी के लिए छूट के लिए आवेदन किसी भी चिकित्सा प्रमाण पत्र द्वारा समर्थित नहीं था और न ही अभियुक्त दीपक चौरसिया के किसी भी हलफनामे द्वारा समर्थित था। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इससे पहले 23.09.2022 को आरोपी को न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया गया था और अदालत के समक्ष पेश होने से अपनी व्यक्तिगत छूट की मांग करते हुए एक आवेदन दिया था और उस दिन अदालत ने इसकी अनुमति दी थी। हालांकि, आवेदक-आरोपी ने फिर से 28.10.2022 को अपनी चिकित्सा आवश्यकताओं को बताते हुए व्यक्तिगत छूट के लिए आवेदन दिया। कहने की जरूरत नहीं है कि वर्तमान मामले में एफ.आई.आर. 20.03.2015 को आवेदक-आरोपी और अन्य के खिलाफ दर्ज किया गया था और उसके बाद मामला दर्ज होने के चार साल बाद 04.01.2020 को अदालत में अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी। अब मामला आरोप पर बहस के लिए तय है और कार्यवाही में पहले ही देरी हो चुकी है। इसलिए, आवेदक-अभियुक्त के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट को रद्द करने या वापस बुलाने का कोई आधार नहीं बनता है। अतः आवेदन खारिज किया जाता है।