आय से अधिक संपत्ति से जुड़े फर्जी दस्तावेज के मामले में CBI की क्लोजर रिपोर्ट खारिज,दीपक चौरसिया अन्य से CBI करेगी पूछताछ!
दिल्ली: मुलायम मुलायम सिंह यादव के आय से अधिक संपत्ति से जुड़े फर्जी दस्तावेज मामले में CBI की क्लोजर रिपोर्ट खारिज एवेन्यू कोर्ट ने जांच करने का आदेश दिया है।
आवेदनकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी द्वारा दायर प्रोटेस्ट पिटीशन पर चीफ मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट (सीएमएम) अंजनी महाजन ने कहा कि कृत्यों में सीबीआइ के किसी अंदरूनी सूत्र की संलिप्तता की जांच करने और जाली 17 पृष्ठों की समीक्षा नोट तैयार करने सहित आधिकारिक दस्तावेजों तक पहुंच प्राप्त करने वालों द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली का पता लगाने के लिए सीबीआइ जांच की जरूरत है।
अदालत ने कहा कि ऐसे में सीबीआइ की अनट्रेस रिपोर्ट को खारिज किया जाता है और वर्तमान मामले में आगे की जांच करने का निर्देश दिया जाता है।अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि सीबीआइ के जांच अधिकारी आगे की जांच करने के लिए स्वतंत्र होंगे। साथ ही इस आदेश में उजागर किए गए पहलुओं पर आगे की जाने वाली जांच और दायर की जाने वाली पूरक रिपोर्ट में शामिल किया जाना चाहिए। अदालत ने इसके साथ ही जांच अधिकारी को 24 मार्च को पूरक आरोप पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि अंतिम रिपोर्ट के अनुसार दो जाली स्थिति रिपोर्ट 30 जुलाई 2007 और 20 अगस्त 2007 में सीबीआइ की बिना तारीख की स्थिति रिपोर्ट से उठाए गए कई पैराग्राफ शामिल थे। इसे सर्वोच्च न्यायालय के अवलोकन के लिए सीलबंद कवर में रखा गया था। सवाल यह है कि शीर्ष अदालत के समक्ष दाखिल करने से एक दिन पहले कैसे लीक हो गई? अदालत ने कहा कि एफएसएल विशेषज्ञ की राय के अनुसार तत्कालीन सीबीआइ डीआइजी तिलोत्तमा वर्मा के हस्ताक्षर को मूल नोट-शीट से उठा लिया गया था और जाली 17 पृष्ठों के समीक्षा नोट पर पुन: पेश किया गया था।
पत्रकारों को जांच एजेंसियों के समक्ष अपना सूत्र बताना होगा
अदालत ने कहा कि सिर्फ इसलिए क्योंकि संबंधित पत्रकारों ने अपने-अपने सूत्र के संबंध में जानकारी देने से इन्कार कर दिया, जांच एजेंसी को पूरी जांच को रोकना नहीं चाहिए था।अदालत ने कहा कि भारत में पत्रकारों को जांच एजेंसियों को अपने स्रोत का खुलासा करने से कोई वैधानिक छूट नहीं है। वह भी तब जब विशेष रूप से एक आपराधिक मामले की जांच में सहायता के उद्देश्य से इस तरह का रहस्योघाटन आवश्यक है। दीपक चौरसिया और मनोज मिट्टा से की मांगी जाए जानकारी
अदालत ने कहा कि अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्रकार दीपक चौरसिया, भूपिंदर चौबे और मनोज मित्ता की जांच की गई थी। हालांकि, भूपिंदर को छोड़कर किसी को भी सीबीआइ द्वारा दायर गवाहों की सूची में गवाह के रूप में उल्लेखित नहीं किया गया है। सीबीआइ ने न तो दीपक चौरसिया और मनोज मिट्टा का बयान दर्ज किया और न ही उन्हें गवाह के रूप में पेश किया।ऐसे में संबंधित पत्रकारों से उनके स्रोतों के पहलू पर आगे की पूछताछ की जाए। उनसे पूछा जाए कि आपत्तिजनक जाली दस्तावेज उन्होंने किससे प्राप्त किए जो उनकी संबंधित समाचार साइटों का आधार बन गए।
यह है मामला
पूरा मामला उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव समेत अन्य से जुड़े आय से अधिक संपत्ति से जुड़ा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पांच मार्च 2007 में प्राथमिक जांच हुई और जांच 26 अक्टूबर 2007 में पूरी हुई। सीबीआइ ने मामले में एक स्थिति रिपोर्ट बनाई और मामले में नौ फरवरी 2009 को शीर्ष अदालत में सुनवाई से एक दिन पहले समाचार पत्रों ने सीबीआइ की रिपोर्ट को प्रकाशित कर दिया। हालांकि, सीबीआइ ने कहा था कि यह फर्जी दस्तावेज एजेंसी व इसके अधिकारियों की छवि को खराब करने के लिए तैयार किए गए हैं और इस मामले में उसने अज्ञात लाेगों के खिलाफ प्राथमिकी भी दायर की थी।
मामले की जांच में जांच एजेंसी ने कहा था कि दस्तावेज फर्जी थे, लेकिन यह नहीं पता चल सका कि फर्जी दस्तावेज किसने बनाए, क्योंकि इसका उपयोग करने वाले पत्रकारों ने अपना स्रोत बताने से इन्कार कर दिया। सीबीआइ की रिपोर्ट पर आवेदनकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेेदी ने प्रोटेस्ट पिटीशन दायर कर उसकी फाइनल रिपोर्ट को खारिज कर आगे की जांच करने का निर्देश देने की मांग की थी। इस मामले में सीबीआइ ने जवाब नहीं दाखिल किया।