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जम्मू-कश्मीर पुलिस में 26 साल सेवा देने वाले हेड कांस्टेबल को डिपोर्ट का नोटिस,हाईकोर्ट ने निर्वासन पर लगाई रोक

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में जम्मू-कश्मीर पुलिस में 26 वर्षों से सेवा दे रहे हेड कांस्टेबल इफ्तिखार अली और उनके आठ भाई-बहनों के पाकिस्तान डिपोर्टेशन पर अंतरिम रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह परिवार केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का निवासी प्रतीत होता है।

पुलिस हेड कांस्टेबल इफ्तिखार अली वर्तमान में वैष्णो देवी के कटरा बेस कैंप में तैनात हैं। उन्होंने अपने डिपोर्टेशन के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अली ने अदालत में राजस्व विभाग के दस्तावेज पेश किए, जिनसे यह प्रमाणित हुआ कि उनके परिवार का पुंछ जिले के नियंत्रण रेखा (LoC) से सटे गांव सलवाह में जमीन है।

न्यायमूर्ति राहुल भारती की एकल पीठ ने आदेश में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को जम्मू-कश्मीर से निष्कासित न किया जाए और न ही उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया जाए। कोर्ट ने सरकार को दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं और अगली सुनवाई 20 मई को निर्धारित की गई है।

क्या है मामला?
26 अप्रैल को प्रशासन ने अली और उनके पांच बहनों और चार भाइयों को पाकिस्तानी नागरिक करार देते हुए डिपोर्ट करने का नोटिस जारी किया था। इसके बाद सभी को पुलिस थाने बुलाया गया और पंजाब के अटारी बॉर्डर भेज दिया गया। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद तेज हुई सुरक्षा जांचों के तहत की गई थी।

पृष्ठभूमि और दस्तावेज़ी साक्ष्य
सामाजिक कार्यकर्ता सफीर चौधरी ने बताया कि अली के पिता फकर दीन पुंछ के सलवाह गांव के निवासी थे। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान गांव का कुछ हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में चला गया था, जिसके कारण दीन और उनका परिवार शरणार्थी बनकर PoK चले गए थे। बाद में 1980 के दशक में परिवार भारत लौट आया और पुंछ में बस गया।

चौधरी ने बताया कि अली के परिवार को स्थानीय प्रशासन द्वारा डोमिसाइल, पासपोर्ट और अन्य वैध दस्तावेज भी जारी किए गए थे। उन्होंने डिपोर्टेशन के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, “जब PoK संवैधानिक रूप से भारत का ही हिस्सा है, तो किसी नागरिक को देश के भीतर ही कैसे डिपोर्ट किया जा सकता है?”