मीडिया का दोहरा चरित्र या दोगलापन
भारत की सेक्युलर मीडिया की सच्चाई अब लगभग पूरी दुनिया ही जान चुकी है !
अब मीडिया जनता की रुचि और विचारों का परिष्कार करने के बजाय उसकी दिलचस्पी का सामान जुटाने और उसके सामने पुरातनपंथी, दकियानूसी और अंधविश्वासी किस्म की सामग्री परोसने में व्यस्त रहता है. हमारे देश की मीडिया सेलिब्रिटी की ओर विशेष ध्यान देना और देश के सामने खड़ी बड़ी बड़ी समस्याओं की अनदेखी करना भी इन दिनों मीडिया के चरित्र का अंग बनता जा रहा है. बड़े बड़े नेता और उनके पुत्र पुत्रियां, मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी, फिल्म अभिनेता और अभिनेत्रियां, बड़े उद्योगपति, फैशन डिजाइनर, और गायक-गायिकाएं, ये सभी इन दिनों सेलिब्रिटी माने जाते हैं और मीडिया का इन पर खास फोकस रहता है. हिन्दी अखबार इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं. पहले हिन्दी अखबारों के रविवारीय संस्करण में साहित्य और अन्य कलाओं पर पठनीय सामग्री हुआ करती थी. संगीत, नृत्य, नाटक की प्रस्तुतियों और कला प्रदर्शनियों की समीक्षाएं छपा करती थीं, लेकिन अब इक्का दुक्का अखबारों को छोडकर शेष अखबार साहित्य एवं कला से पूरी तरह विमुख हो गए हैं.
अब समाचार चैनलों एवं मनोरंजन चैनलों के बीच अंतर करना मुश्किल होता जा रहा है. समाचार चैनलों पर ज्योतिष के लंबे कार्यक्रम, पौराणिक कथाओं पर आधारित तथाकथित वैज्ञानिक खोजों के कार्यक्रम और हास्य के बेहद फूहड़ कार्यक्रम प्रतिदिन कई कई घंटे देखे जा सकते हैं.
कुछ साल पहले एक चैनल ने श्रीलंका में “रावण की ममी” खोज निकाली थी तो दूसरे ने “सशरीर स्वर्गलोक जाने की वैज्ञानिक खोज” के बारे में विस्तृत कार्यक्रम प्रस्तुत किया था. एक अन्य चैनल के कार्यक्रम का शीर्षक था: “यमलोक का रास्ता इधर से जाता है”. अक्सर जब अंतरिक्ष में कोई ज्योतिर्विज्ञान संबंधी घटना होती है, मसलन चंद्रग्रहण या सूर्यग्रहण या इसी तरह की कोई और घटना, तो हिन्दी टीवी चैनल एक ज्योतिषी को भी उस घटना और उसके कारण पड़ने वाले ग्रहों के प्रभाव पर दर्शकों को ज्ञान देने के लिए आमंत्रित करते हैं.
👉👉आज मीडिया किस तर्ज पर काम कर रहा है, समझ से परे है; जिस भेड़चाल की भाषा का इस्ते माल हो रहा है, वो सभी जानते हैं कि एक उच्चवर्ग की भाषा बोली जा रही है. कौन कह सकता है कि यह सभ्य मीडिया है, जो समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को मिटाने में कारगर साबित होगा, जिसका पूरा गिरेवान दागदार हो और जो खुद पूरी तरह से इस दलदल में धस चुका हो, वो क्या समाज का उद्धार करेगा. अगर देखा जाए तो आज तक किसी भी मीडिया संस्था न ने यह दिखाने की जहमत नहीं उठायी कि फलां फलां समाचार पत्र में या न्यूज चैनल में फलां फलां व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त है, या अपराधी है. जिस तरह से पुलिसवाले अपने भाईयों को (सहकर्मी) जल्द ही नहीं पकड़ती, जब तक उसने उपर कोई दवाब न पड़े, उससे भी बुरी दशा मीडिया की है, वो तो दवाब पड़ने के बावजूद भी उनके द्वारा किये गये अपराधों को समाज के सामने नहीं लाता, और पूरा मामला गधे के सिर से सींग की तरह गायब कर दिया जाता है. शायद मीडिया डायन के तर्ज पर काम कर रहा है क्योंेकि डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है; उसी प्रकार मीडिया भी अपने भाईयों को और अपने रहनूमाओं को छोड़कर बाकी सभी को खबर बनाकर पेश करता रहता है. यह एक तरह का दोगलापन है, दोहरा चरित्र है.
वैसे मीडिया में दिखाई जाने वाली तमाम खबरों को देखकर आमजन की धारणा खुद ब खुद बन जाती है कि जो दिखाया जा रहा है वो सोलहआने सत्य है. उसमें झूठ की कहीं कोई गुंजाइस नहीं है. पर आमजन की कसौटी पर मीडिया पूरी तरह खरी नहीं उतरती. वो एक एक खबर की धाज्जियां उड़ाते हुए उस खबर से तालुक रखने वाले व्यक्ति का व उसके परिवार का समाज में जीना हराम कर देते हैं. क्यों कि वो खबर मध्य मवर्ग या फिर निम्नक वर्गीय लोगों से होती है. उच्चउवर्गीय लोगों से ताल्लुक रखने वाली खबर तो बस, खिलाडि़यों की, फिल्मी अभिनेता व अभिनेत्रियों की, नेताओं की, पार्टी में सिरकत लोगों की अधिकांश होती है. क्योंकि कहीं न कहीं इन उघोगपतियों और राजनेताओं द्वारा गरीबों का खून चूस चूसकर इक्ठ्ठा किया जाता है और उस धन से खोल लिया जाता है एक मीडिया संस्थान. काली कमाई को सफेद बनाने का एक आसान जरिया, और बड़ी आसानी से बन भी जाती है,
आज तक मैंने किसी भी मीडिया में यह खबर चलते नहीं देखा कि इस मीडिया संस्था न में इनकम टैक्स का छापा पड़ा हो, उसके मालिक के घर छापा पड़ा हो, और उसका घर या फिर मीडिया चैनल को सील कर दिया हो. क्या मीडिया इतना पाक साफ है कि उसके द्वारा कोई भी अपराध या लेनदेन की घटनायें नहीं होती. इस परिप्रेक्ष्या में क्या कहा जा सकता है; आमजन तो गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी बांधकर सबकुछ सहन कर रहे है; वो सोचते है शायद हमारी यही नियती है; सदियों से झेलते आये है अब भी झेलना पड़ रहा है; जिस चौथे स्तंभ से न्याय की आस लगाये बैठे है वो ही अपराध में लिप्त हो चुका है, जो खुद अपराध में लिप्त है वो बाहुबलियों से पीडि़त व्यक्ति को क्या इंसाफ दिला पाएगा; इस न्याय आस में पीडि़त साल दर साल जीवित रहते है, और मर जाती हैं आस की वो सारी किरण, जो न्याय की दहलीज तक पहुंच सकें.
👉सारांश आज का मीडिया सच्ची पत्रकारिता भूल गया है,सिर्फ मसाला दिखाकर टीआरपी की अंधाधुंध दौड़ लगा रहा है जिसमें वो अपना ईमान बेच चुका है और किसी भी सही को गलत दिखाना उसका पेशा बन गया है वरना एक समय था जब मीडिया दौड़ धूप करके सच दुनिया के सामने लाती थी पर अब सच जानते हुए भी, पैसे खाकर उसको तोड़ मोड़ कर झूटी खबरे परोसी जाती हैं। ऐसा ही कुछ दीपक चोरसिया नामक मीडिया कर्मी करता आ रहा है, उसने अपने चैनल की टीआरपी के लिए एक आम गरीब आदमी के परिवार के सम्मान की धज्जियां उड़ा दी और उस परिवार की मासूम सी 10 वर्षीय बच्ची का अश्लील वीडियो दिन रात अपने चैनल पे दिखाया। पर न्यूज के इन घटिया ठेकेदारों के खिलाफ अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई , और दीपक चौरसिया पे पोक्सो कानून लगे होने के बावजूद वो अभी तक आजाद घूम रहा है वर्ष 2013 से, ओर उसी तरह समाज के गणमान्य हस्तियों के सम्मान की धज्जियां उड़ाते जा रहा है, सिर्फ और सिर्फ अपने चैनल की टीआरपी हेतु, क्या देश के कानून से बड़े हैं ऐसे अपराधी जो मीडिया कर्मी के रूप भेष बनाकर लगातार अपराध किए जा रहे है, आखिर कोन है जो इन सभी पर लगाम लगाएगा, मेरा एक आम नागरिक होने के लिहाज से यही अनुरोध है कि जन जागरण मंच जैसी सभी संस्थाओं को एक साथ मिलकर ऐसे लोगो को सबक सिखाना चाहिए जो दीपक चोरसिया जैसे अपराधियों के संरक्षण कर रहे हैं, और जल्द से जल्द दीपक चोरसिया की गिरफ्तारी होनी चाहिए।
बरखा रानी