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गुरुग्राम POCSO कोर्ट से अजीत अंजुम को झटका, पीड़िता के वकील को हटाने की याचिका खारिज

गुरुग्राम की पॉक्सो (POCSO) अदालत ने चर्चित पत्रकार अजीत अंजुम को बड़ा झटका देते हुए उनकी वह याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उन्होंने पीड़िता के निजी वकील धर्मेंद्र मिश्रा की अभियोजन में भूमिका पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि विशेष लोक अभियोजक ही मुकदमे का संचालन कर रहे हैं और पीड़िता का वकील केवल सहायक की भूमिका में है।

क्या है मामला?

यह मामला वर्ष 2013 से जुड़ा है, जब इंडिया न्यूज़ और न्यूज़ 24 जैसे चैनलों के 8 कर्मचारियों पर आरोप लगे कि उन्होंने प्रसिद्ध आध्यात्मिक संत आसाराम बापू के भक्तों के निजी क्षणों के वीडियो तोड़-मरोड़कर, उन्हें अश्लील और भ्रामक ढंग से प्रसारित किया। इन वीडियो को जिस संदर्भ में पेश किया गया, उसने न केवल पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाई बल्कि मीडिया ट्रायल को भी एक शर्मनाक उदाहरण बना दिया।

25 अगस्त 2023 को गुरुग्राम की विशेष पॉक्सो अदालत ने अजीत अंजुम सहित अन्य आरोपियों पर POCSO एक्ट, आईटी एक्ट, भारतीय दंड संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय किए।

क्या थी याचिका?

अजीत अंजुम के वकील ने BNSS, 2023 की धारा 338(2) (पूर्व में CrPC की धारा 301) और POCSO अधिनियम की धारा 40 का हवाला देते हुए यह याचिका दाखिल की थी। उन्होंने तर्क दिया कि पीड़िता के वकील धर्मेंद्र मिश्रा अभियोजन में असाधारण रूप से सक्रिय हैं, जो कि कानून का उल्लंघन है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णयों का भी उल्लेख किया गया:

  • शिव कुमार बनाम हुकम चंद (1999)
  • रेखा मुरारका बनाम राज्य बनाम पश्चिम बंगाल (2020)

इन निर्णयों में कहा गया है कि शिकायतकर्ता का निजी वकील केवल लोक अभियोजक की सहायतार्थ अदालत में उपस्थित हो सकता है, लेकिन वह सीधे बहस या जिरह नहीं कर सकता जब तक कि उसे कोर्ट की अनुमति न हो।

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने याचिका को पूरी तरह से तथ्यों के विरुद्ध और खारिज किए जाने योग्य बताया। अपने आदेश में

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 10 अक्टूबर 2023 को जब पीड़िता की मुख्य गवाही चल रही थी, तब विशेष लोक अभियोजक ने ही आगे की कार्यवाही स्थगित करने हेतु धारा 311 CrPC के तहत आवेदन दायर किया था। इसके अलावा अन्य कई सुनवाइयों में भी विशेष लोक अभियोजक ही सक्रिय रहे हैं।

कानून क्या कहता है?

POCSO अधिनियम की धारा 40 और BNSS, 2023 की धारा 338 (पूर्व धारा 301 CrPC) के अनुसार, पीड़िता को अपनी पसंद का वकील रखने का अधिकार है। यह वकील मुख्य अभियोजन का संचालन नहीं कर सकता, बल्कि विशेष लोक अभियोजक की मदद कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने रेखा मुरारका बनाम राज्य बनाम पश्चिम बंगाल केस में भी यही निर्णय दिया था कि निजी वकील तभी प्रत्यक्ष रूप से बहस कर सकते हैं, जब कोर्ट की स्पष्ट अनुमति हो।

कोर्ट की अंतिम टिप्पणी:

अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अजीत अंजुम द्वारा लगाए गए आरोप न्यायालयिक व्यवस्था और अभियोजन प्रक्रिया पर संदेह उत्पन्न करते हैं, जबकि रिकॉर्ड में ऐसी कोई असमानता नहीं है।

सूत्रों के अनुसार, अब अगली सुनवाई में पीड़िता की जिरह और अभियोजन पक्ष के गवाहों को अदालत में पेश किया जाएगा। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी पक्षों की निगरानी बढ़ गई है।

गुरुग्राम POCSO कोर्ट का यह फैसला केवल एक कानूनी निर्णय नहीं, बल्कि पत्रकारिता और न्याय के संतुलन का एक सशक्त उदाहरण है। जब मीडिया ट्रायल हावी हो जाए, तो न्यायपालिका का यही दायित्व बनता है कि वह निष्पक्षता और तथ्यों के आधार पर फैसला दे।