गौ के मूत्र,दूध,दही,गोबर,घी से बनी पंचगव्य में कोरोना जैसी अन्य वाइरस को मिटाने की क्षमता है.

नई दिल्ली: आयुर्वेद के प्रचलित ग्रंथ भाव प्रकाश ग्रंथ में भी गौमूत्र की भारी महिमा बताई गई है। इस ग्रंथ के अनुसार गौमूत्र में जीवाणु,कीटाणु, कुष्ट रोग, पेट रोग, मुख के रोग,वायु के रोग, कर्ण रोग बात पिट कफ जैसे आदि रोग की मिटाने की क्षमता है। सारांश यह है कि बात पित कफ से होने वाले रोग को अकेला गौमूत्र से मिटाने की क्षमता है।
हिंदुस्थान के बैधराज नाम का गुर्जर भाषा मे लिखा ग्रंथ व आचार्य श्री वापालाल भाई वैध भारत के वनस्पति शास्त्री द्वारा द्रव्यगुण शास्त्र में गौमूत्र के फायदे बताएं है।

गौमूत्र के गुण आयुर्वेद शास्त्रनुसार सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान के 45 में अध्याय में गौमूत्र के पूरे गुण लिखे गए हैं। सुश्रुत संहिता 5 हजार वर्ष पुराना ग्रंथ है। चरक संहिता, राजनिघंटु,व्रिद्धवागभट्ट,अमृतनुसार में गौमूत्र की महिमा यह है कि –
गौमूत्र कड़वा,चरका,कसैला तीक्ष्ण,उष्ण,शीघ्र पाचक,मस्तिक के लिए शक्तिवर्धक कफ वात हरने वाला शूल,गुल्म,उदर,कुंडू,खुजली,मुखरोग,नाशक है।यह कुष्ट,आम,बस्तिरोग नाशक है।नेत्र रोग नाशक है,अतिसार, वायु के द्वारा सब बिकार,कस, शोथ,उदररोग,कीटाणु,जीवाणु नाशक पांडु,तिल्ली,कर्णरोग,श्वास,मलावरोध,कामला, मिटाने के गुण है।

रोग क्यों होते हैं। जो निम्नलिखित हैं
1.विभिन्न जीवाणुओं के किसी प्रकार से शरीर मे बिभिन्न अंगों पर आक्रमण करने के कारण

2.शरीर की रोग  प्रतिरोधक शक्ति की कमी के कारण

3.त्रिदोष के विषम हो जाने के कारण

4.आरोग्य दायक तत्वों कि किसी प्रकार की कमी के कारण

5.कुछ खनिज तत्वों की कमी के कारण

6.मानसिक विषाद के कारण

7.किसी भी औषधि के अति प्रयोग के कारण

8.विद्युत तरंगों की कमी के कारण

9.बृद्धावस्था में उपरोक्त किन्ही कारणों के कारण

10.आहार में पौष्टिक तत्वों की कमी के कारण

11.आत्मा की आवाज के विरुद्ध काम करने के कारण

12.पूर्व जन्मों के पापों के कारण जिन्हें कर्मज ब्याधियां कहते हैं ।

13.भूतों के शरीर में प्रवेश से भूताभिष्यंग रोग हो जाते हैं।

14.माता-पिता के वंश परंपरा के रोग होते हैं।
15.विषों के द्वारा रोग होते हैं

रोगों पर गौ मूत्र विजय कैसे होता है –

1.गौमूत्र में किसी भी प्रकार के कीटाणु,जीवाणु को नष्ट करने की चमत्कारी शक्ति है। सभी कीटाणु जन्य, जीवाणु जन्य व्यधियाँ नष्ट होती है।

2.गोमूत्र त्रिदोष को समान बनाता है अतएव रोग नष्ट हो जाते हैं।

3.गोमूत्र शरीर में लीवर को सही कर स्वच्छ खून बनाकर किसी भी रोग का विरोध करने की शक्ति प्रदान करता है।

4.गोमूत्र में सभी तत्व (पोटेशियम,कैल्शियम,नाइट्रोजन,सोडियम,कार्बोलिक एसिड, सिलिकॉन, साइट्रिक एसिड, सेक्सेनिक  एसिड, विटामिन ए, बी, सी डी,ई, एंजाइम्स, हिप्यूरिक एसिड, हार्मोन्स, मैग्नेशियम, क्लोराइड,यूरिया,फॉस्फेट क्रिएटिन ,लौह तत्व, ताम्र तत्त्व,अमोनियाँ, एसिड, फॉस्फोरस सल्फर, स्वर्णाक्षार ,लेक्टोज, जल तत्व ऐसे हैं जो हमारे शरीर के आरोग्य दायक तत्वों की कमी की पूर्ति करते हैं।

5.गोमूत्र में कई खनिज खासकर ताम्र होता है, जिसकी पूर्ति से शरीर के खनिज तत्व पूर्ण हो जाते हैं।

6.मानसिक क्षोभ से स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम) को आघात होता है। गोमूत्र को मेद्ध और हृदध कहा गया है। यानी मस्तिक एवं हृदय को शक्ति प्रदान करता है। अतः मानसिक कारणों से होनेवाले आघात से हृदय की रक्षा करता है और इन अंगों को होने वाले रोगों से बचाता है।

7.किसी भी प्रकार की औषधियों की मात्रा का अति प्रयोग हो जाने से तत्व शरीर में रहकर किसी प्रकार से उपद्रव पैदा करते हैं उनको गोमूत्र अपनी विष नाशक शक्ति से नष्ट कर रोगी को निरोग करता है।

8.विद्युत तरंगे हमारे शरीर को स्वस्थ रखती है। यह वातावरण में विद्यमान है। सूक्ष्म अति सूक्ष्म रूप से तरंगे हमारे शरीर में गोमूत्र से प्राप्त ताम्र के रहने से ताम्र के अपने विद्युतीय आकर्षक गुण के कारण शरीर से आकर्षित होती रहकर स्वास्थ्य प्रदान करती है।

9.गोमूत्र रसायन है। यह बुढ़ापाको रोकता है। व्याधियों को नष्ट करता है।

10.आहार में जो पोषक तत्व कम प्राप्त होते हैं उनकी पूर्ति गोमूत्र में विद्धमान तत्वों से होकर स्वास्थ्य लाभ होता है।

11.आत्मा के विरुद्ध कर्म करने से हृदय और मस्तिष्क संकुचित होता है, जिससे शरीर में क्रियाकलापों पर प्रभाव पड़कर रोग हो जाते हैं। गोमूत्र सात्विक बुद्धि प्रदान कर सही कार्य कराकर इस तरह के रोगों से बचाता है।

12.शास्त्रों में पूर्व कर्मज व्याधियां भी कही है जो हमें भुगतनी पड़ती है। गोमूत्र में गंगा ने निवास किया है । गंगा पापनाशिनी है अतएव गोमूत्र पान से पूर्व जन्म के पाप क्षय होकर इस प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं

13.भूतों के शरीर प्रवेश करने के कारण होने वाले रोगों पर गोमूत्र इसलिए प्रभाव करता है कि भूतों के अधिपति भगवान शंकर हैं। शंकर के शीश पर गंगा है । गोमूत्र में गंगा है अतएव गोमूत्र पान से भूतगण अपने अधिपति के मस्तक पर गंगा के दर्शन कर, शांत हो जाते हैं। और इस शरीर को नहीं सताते हैं इस तरह भुताभिष्यंगता रोग नहीं होता है।

14.जिन रोगियों की ऐसी स्थिति हो, रोग के पहले ही गोमूत्र कुछ समय पान करने से रोगी के शरीर में इतनी विरोधी शक्ति हो जाती है कि रोग नष्ट हो जाते हैं।

15.बिशों के द्वारा रोग होने के कारणों पर गोमूत्र विष नाशक होने के चमत्कार के कारण ही रोग नाश करता है। बड़ी-बड़ी विषैली औषधियां गोमूत्र से शुद्ध होती है । गोमूत्र मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाकर रोगों का नाश करने की क्षमता देता है और यूनिटी पावर देता है। निर्विष होते हुए विषनाशक है। एंटीटॉक्सिन है।

ब्रिटेन के डॉक्टर सिमर्स के अनुसार भी गौमूत्र रक्त में बहनेवाले दूषित कीटाणुओं का नाश करता है।

Leave a Reply