जिसकी मौत पर दुश्मन के भी निकले आंसू, ऐसे थे महाराणा प्रताप, पुण्यतिथि आज

महाराणा प्रताप के शौर्य की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है. उनके पराक्रम का लोहा खुद अकबर ने भी माना था जोकि उस समय पूरे भारत को अपनी मुट्ठी में करने का ख्वाब देखता था. आज महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि है.

 
नई दिल्ली: इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर अपनी शौर्य गाथाओं की छाप छोड़ने वाली इस भारत भूमि ने कई योद्धाओं को जन्मा जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता. महाराणा प्रताप भी उन्हीं वीर सपूतों में से हैं जिनके शौर्य की मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है. उनके पराक्रम का लोहा खुद अकबर ने भी माना था. आज उसी महान योद्धा की पुण्यतिथि है. आइए आपको बताते हैं उनके बारे में कुछ रोचक बातें.

जब मेवाड़ में जन्मा एक वीर

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था. उनके पिता महाराणा उदय सिंह और माता जयवंत कंवर थीं. महाराणा प्रताप को बचपन में ‘कीका’ के नाम से पुकारा जाता था. राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव बाप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, उदय सिंह और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने जन्म लिया है.

दिल्ली की सल्तनत

उस दौर में दिल्ली में मुगल सम्राट अकबर का शासन था, जो भारत के सभी राजा-महाराजाओं को अपने अधीन कर मुगल साम्राज्य की स्थापना कर इस्लामिक परचम को पूरे हिन्दुस्तान में फहराना चाहता था. 30 वर्षों के लगातार प्रयास के बावजूद महाराणा प्रताप ने अकबर की आधीनता स्वीकार नहीं की, जिसकी आस लिए ही वह इस दुनिया से चला गया.
यह भी पढ़ें: UP Election: इस वक्‍त की सबसे हॉट सीट, 1 ‘अनार’ कई दावेदार!

कभी न झुकने की प्रतिज्ञा

महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा ली थी कि जिंदगीभर उनके मुंह से अकबर के लिए सिर्फ तुर्क ही निकलेगा और वे कभी अकबर को अपना बादशाह नहीं मानेंगे. अकबर ने उन्हें समझाने के लिए 4 बार शांति दूतों को अपना संदेशा लेकर भेजा था, लेकिन महाराणा प्रताप ने अकबर के हर प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था.

ये रोचक बातें प्रचलित हैं महाराणा प्रताप के बारे में

इतिहासकारों के मुताबिक महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में पारंगत होने के साथ-साथ काफी ताकतवर थे. उनका कद करीब 7 फुट 5 इंच था और वे अपने साथ 80 किलो का भाला और दो तलवारें रखते थे. महाराणा प्रताप जिस आर्मर (कवच) को धारण करते थे उसका वजन भी 72 किलो था. उनके अस्त्रों और शस्त्रों का कुल वजन करीब 208 किलो हुआ करता था.

जब हल्दीघाटी के युद्ध में मुगलों से भिड़े महाराणा

महाराणा प्रताप के जीवन को सच्ची श्रद्धांजलि यही है कि आज की पीढ़ी उनके जीवन से वीरता और शौर्य सीख सके. महाराणा की वीरता का सबसे बड़ा प्रमाण 8 जून 1576 में हुए हल्दी घाटी के युद्ध (Battle of Haldighati) में देखने को मिला जहां महाराणा प्रताप की लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों की सेना का सामना आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना से हुआ था. 3 घंटे से ज्यादा चले इस युद्ध (Battle of Haldighati) में महाराणा प्रताप जख्मी हो गए थे. कुछ साथियों के साथ वे पहाड़ियों में जाकर छिप गए जिससे वे अपने सेना को जमा कर फिर से हमला करने के लिए तैयार कर सकें. लेकन तब तक मेवाड़ (Mewar) के हताहतों की संख्या लगभग 1,600 हो गई थी जबकि अकबर (Akbar) की मुगल सेना ने 350 घायल सैनिकों के अलावा 3500-7800 सैनिक गंवा दिए थे. 
यह भी पढ़ें: अखिलेश यादव पहली बार लड़ेंगे विधान सभा चुनाव, आजमगढ़ से हैं सांसद

युद्ध का नहीं निकला कोई परिणाम

कई इतिहासकार मानते हैं कि हल्दी घाटी के युद्ध (Battle of Haldighati) युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ. माना यह जा रहा था कि अकबर (Akbar) की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत ज्यादा देर नहीं टिक पाते. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और राजपूतों ने मुगलों की सेना में ऐसी हलचल मचा दी थी कि मुगलों की सेना में अफरातफरी मच गई थी. इस युद्ध में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की सेना के क्षत विक्षत होने पर उन्हें जंगल में छिपना पड़ा और फिर से अपनी ताकत जमा करने का प्रयास करने लगे. महाराणा ने गुलामी की जगह जंगलों में रहकर भूखों रहना पसंद किया लेकिन कभी अकबर की बड़ी ताकत के आगे नहीं झुके. 

छापामार रणनीति के लिए मशहूर थे महाराणा

हल्दी घाटी युद्द के बाद महाराणा प्रताप जंगलों में निवास करने लगे. लेकिन अकबर की सेनाओं पर छापामार युद्ध करते रहे. यह रणनीति पूरी तरह से सफल रही और वे कभी अकबर (Akbar) के सैनिकों की लाख कोशिशों के बाद भी उनके हाथ नहीं आए. कहा जाता है इस दौरान राणा को घास की रोटी तक पर गुजारा करना पड़ा. लेकिन 1582 में दिवेर का युद्ध (Battle of Dewair) एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ. दिवेर के युद्ध (Battle of Dewair) में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के खोए हुए राज्यों की पुनः प्राप्ती हुई, इसके बाद राणा प्रताप व मुगलों के बीच एक लंबा संघर्ष युद्ध के रुप में बदल गया, जिसके कारण इतिहासकारों ने इसे ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहा. 

कभी नहीं झुके महाराणा

अकबर (Akbar) इस बीच बिहार बंगाल और गुजरात में विद्रोह दबाने में लगा था जिससे मेवाड़ पर मुगलों का दबाव कम हो गया. दिवेर की लड़ाई (Battle of Dewair) के बाद महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) ने उदयपुर समेत 36 अहम जगहों पर अपना अधिकार कर लिया और राणा का मेवाड़ के उसी हिस्से पर कब्जा हो गया जब उनके सिंहासन पर विराजने के समय था. इसके बाद महाराणा ने मेवाड़ के उत्थान के लिए काम किया, लेकिन 11 साल बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावण्ड में उनकी मृत्यु हो गई. 

दुश्मनों ने भी माना महाराणा का लोहा

कहते हैं महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर की आंखों में भी प्रताप की अटल देशभक्ति को देखकर आंसू छलक आए थे. मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, ‘इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है. धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे. प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया.’ 

Leave a Reply