आसाराम बापू,नारायण साईं केस में धारा 311 की अर्ज़ियां खारिज,विटनेस प्रोटेक्शन कानून से जुड़े महेंद्र चावला को नहीं मिली राहत

आसाराम बापू,नारायण साईं केस में धारा 311 की अर्ज़ियां खारिज,विटनेस प्रोटेक्शन कानून से जुड़े महेंद्र चावला को नहीं मिली राहत

पानीपत की एडिशनल सेशन कोर्ट ने बहुचर्चित आसाराम बापू–नारायण साईं प्रकरण में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 311 के तहत दायर किए गए सभी आवेदनों को खारिज करते हुए अहम आदेश पारित किया है। कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिन दस्तावेजों को अतिरिक्त साक्ष्य के रूप में रिकॉर्ड पर लाने की मांग की गई थी, वे न तो प्रामाणिक हैं और न ही मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए आवश्यक।

यह मामला इसलिए भी विशेष महत्व रखता है क्योंकि शिकायतकर्ता महेंद्र चावला वही व्यक्ति हैं, जिन पर कथित हमले के बाद देश में गवाहों की सुरक्षा को लेकर बहस तेज हुई थी और बाद में संसद से “विटनेस प्रोटेक्शन अधिनियम” को कानून का रूप दिया गया था।

इस मामले में राज्य की ओर से लोक अभियोजक अश्वनी कुमार, शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता संदीप सैनी, आरोपी नारायण साईं की ओर से अधिवक्ता धर्मेंद्र कुमार मिश्रा, जबकि आरोपी निशांत राज की ओर से एडवोकेट सुमित कुमार अग्रवाल ने अदालत में पक्ष रखा।

क्या थी शिकायतकर्ता महेंद्र चावला की मांग

शिकायतकर्ता महेंद्र चावला ने आरोप लगाया कि आरोपी नारायण साईं और उनके पिता आसाराम बापू प्रभावशाली व्यक्ति हैं और पूर्व में उनकी सुरक्षा को लेकर पुलिस ने लापरवाही बरती। इसी आधार पर शिकायतकर्ता ने कई पुरानी शिकायतें, आरटीआई से प्राप्त दस्तावेज, डाक रसीदें, मोबाइल रिकॉर्ड और हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट को अतिरिक्त साक्ष्य के रूप में पेश करने की अनुमति मांगी। शिकायतकर्ता महेंद्र चावला का यह भी दावा था कि पुलिस द्वारा पुराने रिकॉर्ड नष्ट कर दिए गए हैं, इसलिए द्वितीयक साक्ष्य के रूप में इन दस्तावेजों को स्वीकार किया जाना चाहिए। इसके लिए उन्होंने माननीय उच्च न्यायालय के 29 सितंबर 2025 के आदेश का हवाला भी दिया।

आरोपियों की ओर से कड़ा विरोध

आरोपी पक्ष के अधिवक्ताओं ने इन आवेदनों का जोरदार विरोध करते हुए दलील दी कि— धारा 311 का प्रयोग ऐसे दस्तावेज लाने के लिए नहीं किया जा सकता जो अंतिम रिपोर्ट का हिस्सा नहीं हैं। मामले में जालसाजी (IPC 467/468) का कोई आरोप नहीं है, इसलिए हस्तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट अप्रासंगिक है

फोटोकॉपी के आधार पर हस्तलेख विशेषज्ञ कोई राय नहीं दे सकता। आरटीआई दस्तावेजों की प्रामाणिकता सिद्ध नहीं की गई और मोबाइल रिकॉर्ड भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के अनुरूप नहीं हैं

आरोपी पक्ष ने इसे मुकदमे को लंबा खींचने का प्रयास बताया।

कोर्ट की सख्त टिप्पणी

एडिशनल सेशन जज ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि—यह साबित नहीं किया जा सका कि प्रस्तुत किए जा रहे दस्तावेज वही हैं जो कभी पुलिस को दिए गए थे। डाक रसीदें यह सिद्ध नहीं करतीं कि उनके साथ वही शिकायतें भेजी गई थीं।

आरटीआई दस्तावेजों के साथ कोई प्रामाणिक अग्रेषण या संदर्भ पत्र संलग्न नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य कानून के अनुरूप नहीं हैं। इन दस्तावेजों को स्वीकार करने से मामले की दिशा बदल जाएगी और सुनवाई में अनावश्यक देरी होगी।

अदालत का अंतिम आदेश - कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि ये दस्तावेज मामले के उचित निर्णय के लिए प्रासंगिक नहीं हैं। इसी आधार पर दिनांक 1 अक्टूबर 2025 और 18 नवंबर 2025 को दायर धारा 311 सीआरपीसी के सभी आवेदन खारिज कर दिए गए।

गौरतलब है कि इसी मामले में बीते 11 नवंबर 2025 को पानीपत की मजिस्ट्रेट अदालत ने बापू आसाराम के खिलाफ चल रहे केस को बंद करने का आदेश भी पारित किया था, जिसके बाद यह आदेश कानूनी रूप से बेहद

अहम माना जा रहा है।