क्रिसमस के साथ तुलसी पूजन: कैसे बदली 25 दिसंबर की तस्वीर

क्रिसमस के साथ तुलसी पूजन: कैसे बदली 25 दिसंबर की तस्वीर

नई दिल्ली:- 25 दिसंबर की तारीख वर्षों से देश-दुनिया में क्रिसमस डे के रूप में मनाई जाती रही है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में भारत में इस दिन को लेकर एक नई सांस्कृतिक पहचान उभरकर सामने आई है। सोशल मीडिया और धार्मिक-सांस्कृतिक मंचों पर 25 दिसंबर को “तुलसी पूजन दिवस” के रूप में मनाने की मांग तेज होती जा रही है। अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि देखते ही देखते यह तारीख तुलसी पूजन से जुड़ने लगी?

तुलसी पूजन दिवस की शुरुआत कैसे हुई

25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत संत आसाराम बापू द्वारा की गई मानी जाती है। समर्थकों के अनुसार, इसका उद्देश्य भारतीय संस्कृति, पर्यावरण संरक्षण और पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देना था। आसाराम बापू ने अपने प्रवचनों और आयोजनों में यह विचार रखा कि भारतीय समाज को पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभावों के साथ-साथ अपनी परंपराओं पर भी गर्व करना चाहिए।

25 दिसंबर ही क्यों चुनी गई तारीख

तुलसी पूजन दिवस के लिए 25 दिसंबर की तारीख चुने जाने के पीछे यह तर्क दिया गया कि यह दिन पहले से ही वैश्विक स्तर पर चर्चित है। समर्थकों का कहना है कि इसी दिन तुलसी पूजन को एक वैकल्पिक सांस्कृतिक आयोजन के रूप में प्रस्तुत कर भारतीय परंपराओं और जीवनशैली की ओर समाज का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। इसे किसी धर्म विशेष के विरोध के बजाय सांस्कृतिक संतुलन के रूप में देखा गया।

सोशल मीडिया से जनचेतना तक

शुरुआत में तुलसी पूजन दिवस की चर्चा सीमित धार्मिक संगठनों और आश्रमों तक ही रही, लेकिन सोशल मीडिया पर #TulsiPoojanDiwas जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। इसके बाद कई सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों ने इस पहल को अपनाया। स्कूलों, आश्रमों और घरों में तुलसी पूजन के कार्यक्रम आयोजित होने लगे और यह अभियान धीरे-धीरे जनचेतना का विषय बन गया।

तुलसी का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

भारतीय परंपरा में तुलसी को माता का दर्जा दिया गया है। धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ आयुर्वेद में भी तुलसी को औषधीय पौधा माना गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, तुलसी वायु को शुद्ध करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होती है। इसी कारण समर्थक इसे केवल धार्मिक नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़ा विषय भी मानते हैं।

विवाद और समर्थन दोनों

हालांकि तुलसी पूजन दिवस को लेकर मतभेद भी सामने आए हैं। कुछ वर्गों ने इसे क्रिसमस के विरोध से जोड़कर देखा, जबकि समर्थकों ने साफ किया कि यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं के समर्थन की पहल है। समर्थकों का कहना है कि भारत एक बहुधार्मिक देश है, जहां सभी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए समान स्थान होना चाहिए।

आज की स्थिति

वर्तमान में स्थिति यह है कि देश के कई हिस्सों में 25 दिसंबर को क्रिसमस के साथ-साथ तुलसी पूजन भी किया जा रहा है। यह दिन अब केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि संस्कृति, पहचान और परंपरा से जुड़ी बहस का प्रतीक बन चुका है।